फाउंडेशनल लर्निंग से परे जाना अब एक जरूरत है
14 August 2019
“2025 तक पांचवी कक्षा एवं उससे ऊपर के सभी विद्यार्थी बुनियादी साक्षरता एवं संख्या ज्ञान अर्जित कर सकें”
यह उद्देश्य राष्ट्रीय साक्षरता नीति का अध्याय है तथा साक्षरता और संख्या पर आधारित है, जोकि वर्षों से भारतीय शिक्षा प्रणाली को चुनौती देने वाले सीखने के संकट की स्वीकार्यता के साथ शुरू होता है। इस तर्क को बनाने में, असर दस्तावेजों और विश्व बैंक की रिपोर्ट जोकि चौंकाने वाले आंकड़े बताते हैं कि भारत के 50% से अधिक लोग पर्याप्त रूप से पढ़ने, लिखने या संख्या के साथ जुड़ाव करने में असमर्थ हैं| नई शिक्षा निति का ड्राफ्ट इस संकट की स्थिति को स्वीकार करता है। इन मुद्दों को प्राप्त करने के लिए, सबसे पहले उनके प्रस्तावित समाधान को समझना होगा।
इस ड्राफ्ट में, के. कस्तूरीरंगन समिति ने इस समस्या का समाधान करने का दावा करते हुए कहा कि संकट का एक प्रमुख कारण “स्कूल की तैयारी की कमी” या बचपन की देखभाल की कमी है | इसलिए वे इस ड्राफ्ट में माता-पिता और आंगनवाड़ियों के लिए एक रूपरेखा तैयार करते हैं। जिसका उद्देश्य था कि एक ऐसी शिक्षा नीति तैयार की जाए जो छात्रों को जरूरी कौशल और ज्ञान के साथ ही शिक्षा में नए बदलाव का सुझाव दे ताकि शिक्षा से देश के सभी लोगों को जोड़ा जा सके। छात्रों को अपना पाठ्यक्रम शुरू करने के लिए आवश्यक संज्ञानात्मक उपकरणों से लैस करने के लिए, कक्षा 1 के पहले 3 महीनों के लिए एक स्कूल तैयारी मॉड्यूल पेश किया जाएगा। यह ड्राफ्ट इन प्रारंभिक ग्रेडों में मूलभूत कौशल में वृद्धि पर ध्यान केंद्रित करने का तर्क देता है क्योंकि वे कक्षा सामग्री, भाषा / गणित सप्ताह और भोजन आदि को फिर से डिज़ाइन करने की योजना बनाते हैं। यह राष्ट्रीय ट्यूटर्स कार्यक्रम के साथ होगा, जिसमें अच्छे अकादमिक रिकॉर्ड वाले सीनियर छात्र अपने जूनियर समकक्षों को पढ़ाएंगे।
समिति ने बच्चों की शिक्षा में पोषण और स्वास्थ्य के महत्व को भी माना है। इस संदर्भ में, उन्होंने शिक्षा को प्रभावित करने वाले कारकों को समझने का प्रयास एक व्यापक दृष्टिकोण से किया है। वे उन सभी छात्रों के लिए “एक मिशन-मोड उपचार के लिए समर्पण” का प्रस्ताव करते हैं जो पहले से ही स्कूल में हैं और अपने अपेक्षित स्तर से पीछे रह गए हैं। वे “रेमेडियल इंस्ट्रक्शन एड प्रोग्राम” के माध्यम से इसे प्राप्त करने की उम्मीद करते हैं, जो 10 वर्षों की एक अस्थायी परियोजना है जिसके माध्यम से स्थानीय समुदायों के प्रशिक्षकों द्वारा स्कूल समय के दौरान और बाद में विशेष उपचारात्मक कक्षाएं आयोजित करने को लेकर आकर्षित करने में सफल होगा। हालांकि अपने आप में यह विचार आवश्यक है लेकिन इसका ड्राफ्ट में ज्यादा विस्तार नहीं किया गया है और इसमें इस अध्याय की अस्पष्टता भी दिखाई देती है। यह कार्यक्रम उन छात्रों की मदद करने के लिए है, जो “पीछे रह गए हैं” लेकिन इस बात पर कोई स्पष्टता नहीं है कि यह मदद मूलभूत शिक्षा तक ही सीमित है। ऐसी स्थिति में, नींव से लेकर उनके आवश्यक जरुरी स्तर में सीखने के संकट का समाधान नहीं हो पायेगा।
ड्राफ्ट में ड्रॉपआउट पर “सेकंड चांस एजुकेशन प्रोग्राम” का उल्लेख किया गया है। ड्रॉपआउट्स जो 15 वर्ष और उससे अधिक आयु के हैं, उन्हें वयस्क साक्षरता प्राप्त करने के लिए वयस्क शिक्षा योजनाओं में नामांकित किया जाएगा। हालांकि, वे व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रमों के साथ भी इसे फॉलो कर सकते हैं और यह सुनिश्चित करने के लिए कि छात्र अपने आवश्यक स्तर पर बने रहने में सक्षम हैं, इसके परिवर्तन पर भी विस्तार किया गया। लेकिन ड्राफ्ट में इन मूलभूत बुनियादी बातों से होने वाले परिवर्तन पर चर्चा कम है।
शिक्षाविद् अनीता रामपाल ने ड्राफ्ट पर अपनी टिप्पणी में कहा कि यह ड्राफ्ट प्राथमिक शिक्षा में समस्याओं को स्वीकार करता है, लेकिन यह इस तथ्य को संबोधित नहीं करता है कि यह शिक्षा पद्धति सामान्य तौर पर भारतीय शिक्षा प्रणाली से जुड़ी है। यह महत्वपूर्ण है क्योंकि यह इस तथ्य पर प्रकाश डालता है कि भले ही कोई यह मान ले कि प्रस्तावित समाधान मजबूत मूलभूत कौशल वाले छात्रों को तैयार करेंगे, फिर भी उन्हें अपने माध्यमिक विद्यालय में एक प्रणाली में प्रवेश करना होगा जिसमें शायद ध्यान व्याख्यान आधारित रट्टा सीखने पर अधिक हो। आगामी कक्षाओं में आने वाले छात्रों को भी एक ही तरह के मुद्दों का सामना करना पड़ सकता है क्योंकि ऐसे बिन्दुओं पर रट्टा सीखने के महत्व को कम करने के लिए पूरे सिस्टम में शिक्षाशास्त्र को संबोधित करने की आवश्यकता है। परिवर्तन का यह मुद्दा केवल सामग्री के संदर्भ में नहीं है, यह शिक्षण विधियों के संदर्भ में भी हो सकता है।
अंत में, यह मुद्दा बनाया जा रहा है कि हमारे राष्ट्र का सीखने का संकट मूलभूत साक्षरता प्राप्त करने तक सीमित नहीं है। हालांकि यह अत्यंत महत्व है और ड्राफ्ट ने उस मुद्दे से निपटने में विचार किया है लेकिन यह छात्रों को अपने मौजूदा स्तरों से परिवर्तन में मदद करने की योजना के बिना अधूरा है।