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परिवेदना निवारण समिति एक वेदना बनकर रह गई

accountability

19 November 2014

नि:शुल्क एंव अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 व राजस्थान नि:शुल्क एंव अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार, नियम 2011 के प्रावधानों के अंतर्गत भाग 8 में शिकायत निवारण के बारे में जानकारी दी गई है | जो निम्न प्रकार से है-

अध्यापकों के लिए शिकायत निवारण तंत्र- राज्य सरकार या स्थानीय प्राधिकारी द्वारा स्थापित, स्वामित्वाधीन या नियन्त्रणाधीन, विधालयों में अध्यापकों की शिकायतों के निवारण के लिए निम्नलिखित सदस्यों मिलकर एक प्रखंड स्तरीय शिकायत निवारण समिति होगी:-

1 प्रखण्ड विकास अधिकारी – अध्यक्ष

2 प्रखण्ड प्रारंभिक शिक्षा अधिकारी- सदस्य

3 अतिरिक्त प्रखण्ड प्रारंभिक शिक्षा अधिकारी- सचिव

स्वामित्वाधीन या नियन्त्रणाधीन विधालय का अध्यापक समिति के सचिव को लिखित में शिकायत प्रस्तुत कर  सकता है | अध्यापको की शिकायत निवारण के लिए एक जिला स्तरीय शिकायत निवारण समिति भी होगी अगर कोई अध्यापक प्रखण्ड स्तरीय समिति के निर्णय से संतुष्ट नहीं है तो उसके विरुध्द जिला स्तरीय शिकायत निवारण समिति अपील कर सकता है | जिला स्तरीय शिकायत निवारण समिति मे निम्न सदस्य होंगे:-

1 मुख्य कार्यकारणी अधिकारी जिला परिषद् – अध्यक्ष

2 जिला प्रारम्भिक शिक्षा अधिकारी – सदस्य

3 अतिरिक्त जिला प्रारम्भिक शिक्षा अधिकारी- सचिव

निर्णय करने में यह सुनिश्चित किया जायेगा की प्रखण्ड स्तर पर पंजीकृत होने के बाद जिला स्तर पर अन्तिम निर्णय होने तक तीन माह से अधिक का समय नहीं लगे | प्रखण्ड स्तरीय शिकायत समिति व जिला स्तरीय शिकायत निवारण समिति की बैठक आवश्यकतानुसार किन्तु प्रत्येक तीन माह में एक बार होना आवश्यक है | प्रत्येक सहायता प्राप्त/गैर सहायता प्राप्त निजी विधालय अपने अध्यापकों की शिकायतों के निवारण के लिए स्वयं अपना तंत्र विकसित करेगा |

बच्चों/अभिभावक की शिकायत का निवारण- अधिनियम के उल्लंघन से उत्पन्न कोई शिकायत सीधे विधालय प्रबंधन समिति के अध्यक्ष को की जायेगी विधालय प्रबंधन समिति अभिभावकों से प्राप्त शिकायतों को पंजीकृत  करने की व्यवस्था करेगी | विधालय प्रबंधन समिति का अध्यक्ष नियमित बैठकों मे शिकायत मे उठाये गये विवादों पर विचार करेगा और उन पर समुचित कार्यवाहीं करेगा | परन्तु मामले की गंभीरता पर निर्भर रहते हुए आपातकालीन बैठक भी बुलाई जा सकती है | दोनों पक्षकारों की सुनवाई करने के बाद विधालय प्रबंधन समिति यदि उसके स्तर पर कार्यवाही की जानी है तो समुचित कार्यवाही करेगा अन्यथा मामले को समुचित प्राधिकारी के पास कार्यवाही के लिए निर्दिष्ट कर देगी | समुचित प्राधिकारी उचित कार्यवाही कर तीन माह की अवधि मे आवेदक को सूचित करेगा |

यदि आवेदक की गई कार्यवाही से संतुष्ट नहीं है तो वह राजस्थान बाल अधिकार संरक्षण आयोग/ राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग मे जा सकता है |

इस प्रक्रिया को समझने का मौका मुझे पैसा जिला अध्ययन प्रतिवेदन 2013 के निष्कर्षों का प्रसार करने के दौरान मिला | प्रसार अभियान में हम विधालय को प्राप्त अनुदानों, खर्च अनुदानों व विधालय में आरटीई कानून के तहत उपलब्ध मापदंडो की जानकारी विधालय प्रबंधन समिति के सदस्यों व ग्राम वासियों को देते है | हाल ही मे मुझे उदयपुर जिले के बडगांव प्रखण्ड के एक विधालय मे पैसा जिला अध्ययन प्रतिवेदन 2013 के मुख्य निष्कर्षों (विधालय को प्राप्त अनुदानों, खर्च अनुदानों व विधालय में आरटीई कानून के तहत उपलब्ध मापदंडो) को साझा करने का मौका मिला | विधालय में प्रसार अभियान बैठक दिनांक व समय की जानकारी दो दिन पहले प्रधानाध्यापिका को दे दी गयी थी | ताकि बैठक की सूचना प्रधानाध्यापिका विधालय प्रबंधन समिति के सदस्यों व गांव वालों को दे सके | प्रसार अभियान बैठक के निर्धारित दिन मैं व मेरे साथी बृजेन्द्र सिंह विधालय में पहुंचे | तय समय अनुसार किसी भी व्यक्ति के विधालय मे नहीं पहुचने पर हमने प्रधानाध्यापिका से लोगो के नही आने का कारण जाना | प्रधानाध्यापिका ने कहा की विधालय प्रबंधन समिति के सदस्य आते ही होंगे आप थोडा इंतजार कीजिये | हमने सोचा यहाँ बैठने से अच्छा है की हम गाँव के लोगो को आज की बैठक के लिए बुलाकर लाते है | इसी सोच के साथ हम लोग गाँव मे निकल पड़े और घर-घर जाकर लोगो को विधालय मे होने वाली बैठक के बारे मे जानकारी दी | गाँव में बैठक की सूचना देते हुए हम एक दूकान पर पहुंचे जहा पर करीब 8 युवा लड़के बैठे थे | हमने उनको विधालय मे होने वाली बैठक के बारे मे बताया और विधालय मे आने का आग्रह किया | उनसे बातचीत के दौरान हमें पता चला कि वे विधालय में कार्यरत शिक्षिकों के व्यवहार से काफी नाराज थे फिर भी उन्होंने बैठक मे आने की दिलासा दी | गाँव मे बैठक की सूचना देने के बाद हम वापस विधालय मे पहुंचे |

विधालय मे धीरे-धीरे विधालय प्रबंधन समिति के सदस्य व ग्राम वासी आने लगे | करीब 20 लोगों के आने पर हमने बैठक की शुरुआत की | जब हमने विधालय में आने वाले अनुदानों की जानकारी दी तो गाँव वालों ने कहा की सर हमारे विधालय में इतना अनुदान आता है इसकी जानकारी हमें नहीं थी | उपस्थित सदस्यों ने विधालय प्रबंधन समिति के अध्यक्ष के बारे मे पूछा तो प्रधानाध्यापिका ने उनको अध्यक्ष की जानकारी दी | गांव वालों को पहली बार पता चला की विधालय प्रबंधन समिति के अध्यक्ष कौन है | जिस तरह से गाँव वालों को अध्यक्ष के बारे मे नही पता था उसी प्रकार विधालय प्रबंधन समिति के सदस्यो कि जानकारी गांव वालों को नहीं थी | प्रधानाध्यापिका ने कहा की हमने 15 अगस्त को प्रस्ताव लेकर नई विधालय प्रबंधन समिति का निर्माण किया है इस पर गांव वालों ने कहा की विधालय प्रबंधन समिति का गठन कब हुआ इसकी जानकारी प्रधानाध्यापिका ने हमे नहीं दी | पैसा जिला अध्ययन प्रतिवेदन 2013 के मुख्य निष्कर्ष साझा करने के बाद एक काल्पनिक अभ्यास रखा गया | जिसमे उपस्थित सदस्यों को विधालय में आने वाले अनुदानों को खर्च करने सम्बन्धी काल्पनिक अभ्यास करवाया गया | काल्पनिक अभ्यास के दौरान गांव वालों ने अपनी समस्याओं के बारे में बताते हुए कहा की विधालय मे अध्यापिकाएं न तो समय पर आती है और न ही समय पर जाती है | विधालय मे इनका ज्यादातर समय फोन पर बात करने व स्वयं के निजी कार्य करने मे निकल जाता हैं | अगर गाँव से कोई व्यक्ति इसकी शिकायत करने विधालय के लिए आता है तो उसे यह कहकर विधालय से निकल दिया जाता है की आप को विधालय मे आने का कोई हक़ नहीं है, आप हमें कहने वाले कौन होते है | परिणामस्वरूप लगातार अध्यापिकाओ की लापरवाही के चलते बच्चों का पढ़ने का स्तर कमजोर होता जा रहा है | प्रधानाध्यापिका ने इस दौरान किसी प्रकार का विरोध नहीं किया |

वही दूसरी और प्रधानाध्यपिका ने कहा की गांव वालो ने हमारे विधालय की चारदीवारी पानी भरने के लिए तोड़ दी | जिसके चलते पशु विधालय मे घुस जाते है और विधालय मे काफी सारी गंदगी कर देते है | चारदीवारी को सही करवाने के लिए हमने ग्राम पंचायत, विधालय प्रबंधन समिति के सदस्यों व गांव वालों को कई बार सूचित किया लेकिन अभी तक किसी के भी कान पर जूं नहीं रेंगी | विधालय प्रबंधन समिति के सदस्य बैठक मे नहीं आते है क्यूंकि ज्यादातर सदस्य मजदूरी के लिए जाते है | जिसके चलते समस्या घटने के बजाय बढ़ रही है उनका समाधान भी नहीं हो पता है |  

इन समस्याओं को सुनकर हमने लोगो को विधालय के साथ पारस्परिक सम्बन्ध सही बनाकर रखने के लिए कहा | किसी प्रकार की समस्या विधालय या गांव वालों से है तो उसे गांव वाले व अध्यापक विधालय प्रबंधन समिति मे चर्चा के माध्यम से दूर कर सकते है | अगर समस्या का निवारण विधालय स्तर पर नहीं हो रहा है तो हम इसके लिए प्रखण्ड व जिला स्तर पर बनी परिवेदना निस्तारण समिति के पास जा सकते है | इस प्रकार कि समिति के बारे मे पहले किसी ने सुना नही था | हमने उनको परिवेदना निस्तारण समिति के बारे में जानकरी दी |

अब गांव वालों को लग रहा था की हमारी समस्या अगर विधालय या ग्राम पंचायत स्तर पर समाधान नहीं होता है तो हम इंसाफ के लिए आगे जा सकते है |  

निष्कर्ष- यह सारा माजरा देखने के बाद मैं सोच रहा था कि वर्तमान समय में न जाने कितने ऐसे शिक्षक व अभिभावक है जिनको विधालय मे काफी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है | विधालय प्रबंधन समिति और समुदाय को अपने अधिकारों व कर्तव्यों के बारे में पता नहीं है | विधालय स्तर की समस्याएँ आज ग्राम पंचायत स्तर तक ही सिमट कर रह गई है | नतीजन जानकारी के अभाव मे ये समस्याएं एक वेदना बनकर रह गई है | इन वेदनाओं के चलते आज शिक्षकों व अभिभावकों में दूरियां बढती जा रही है | आज हमें सोचने की जरूरत है कि अध्यापक व अभिभावकों में जो दूरियां बढ़ रही है उसके लिए कौन जिम्मेदार है ? क्या हम सरकारी विधालयों मे ऐसी समस्याओं के चलते नामांकन मे बढ़ोतरी की उम्मीद कर सकते है ? कही सूचना के अभाव में परिवेदना निवारण समिति एक नाममात्र की समिति बनकर नही रह जाये ?

 

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