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मेरी आत्मकथा

accountability

22 October 2014

मेरा नाम ज्ञान चंद है | मेरी उम्र लगभग 47 वर्ष है | मेरा जन्म हिमाचल राज्य के एक छोटे से गाँव के एक गरीब परिवार में हुआ | पिताजी किसान और माँ गृहिणी थीं | परिवार मे 2 भाईयों और 2 बहनों में, मैं सबसे छोटा हूँ | आर्थिक स्थिति खराब होने के साथ परिवार भी बड़ा था | परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी जिसके चलते हमें मुश्किल से ही दो वक्त का खाना नसीब हो पाता था | इस कारण मेरा बचपन बहुत तंगहाली में गुजरा | पिताजी से जो बन पाया उससे बढ़कर उन्होंने हमारे लिए किया | मैं पढ़ने में बचपन से ही बहुत होशियार था | गरीबी को मैंने कभी भी अपनी शिक्षा पर हावी नहीं होने दिया मैं हमेशा कक्षा में अव्वल स्थान प्राप्त करता था | 12वीं कक्षा पास करने के बाद परिवार की गरीब स्थिति को देखते हुए मैंने कही पर नौकरी करने का निर्णय लिया | कुछ समय बाद मुझे एक निजी स्कूल में अध्यापक की नौकरी मिल गयी | यहाँ से मेरा अध्यापन कार्य का सफ़र शुरू हो गया | अध्यापन कार्य के साथ-साथ मैंने अपनी शिक्षा भी जारी रखी और कला वर्ग में स्नातक की शिक्षा पास की |

अभी मैं एक सरकारी शिक्षक हूँ और प्राथमिक पाठशाला में कार्यरत हूँ | अध्यापक के पद पर रहते हुए मैंने यह महसूस किया की शिक्षक तो एक ऐसा कारीगर है, जो की समाज की नींव रखते हुए एक अच्छे समाज का निर्माण करता है | मेरा मानना है की जिस प्रकार हमारे जीवन के लिए खाना आवश्यक है उसी तरह शिक्षा भी मनुष्य जीवन विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण है | सारांश में कहूँ तो हमारा समाज तभी तरक्की कर सकता है जब हम शिक्षित हों |

अभी तक मैंने बहुत से विद्यालयों में अध्यापन का कार्य किया है और अध्यापक के पद पर रहते हुए बहुत सारे अनुभव भी प्राप्त किये हैं | इस बात को भी नकारा नही जा सकता है कि अध्यापक का पूरा समय रिकार्डो को भरने एव मांगी गई जानकारी को देने में ही पूरा दिन गुजर जाता है | यही तक नहीं स्कूल में एम.डी. एम (MDM) को सुचारू रूप से बनाये रखने के लिए सिलेंडर का इतंजाम के लिए भी ज्यादातर खुद से ही भागदौड़ करनी होती है | स्कूल में निर्माण कार्य की जिम्मेदारी भी खुद से ही लेनी होती है | कुछ अध्यापक ऐसे भी होते है जो काम की आड़ में हमेशा काम का बहाना बनाते हैं और बच्चों की पढाई पर ध्यान नहीं देते हैं | टीचर प्रशिक्षण में अधिकतर वही अध्यापक शामिल होते हैं जो अपने कार्य की महत्वत्ता समझते हैं !

मैं पिछले 3 वर्षों से सी.एच.टी. (Centre Head Teacher) के पद पर कार्य कर रहा हूँ | इसमें मुझे अपने विद्यालय के अलावा 5 और विद्यालयों की भी जिम्मेदारी मिली है | वर्तमान समय मे मेरे मुख्य कार्य में स्कूलों की निगरानी, सी.एच.टी. का दफ्तरी कार्य, बच्चों के अध्ययन स्तर को जांचना, अध्यापक की समय पर उपस्थिति व स्कूलों की मूल-भूत आवश्यकताओं को देखना है | यह सच है कि अध्यापक को बच्चों की पढ़ाई से ज्यादा ध्यान अन्य कार्य पर भी देना पड़ रहा है |

मैं हमेशा यही ध्यान में रखता हूँ कि मुझे अपने विद्यालय के अलावा दुसरे 5 विद्यालयों की समस्यायों को भी ध्यान में रखते हुए कार्य करना है | मैं किसी रजिस्टर को भरने या अन्य काम को अपने स्कूल के मैदान में एक पेड़ के नीचे बैठ कर करता हूँ ! अब आप ये सोच रहे होंगे की मैं ऑफिस में ना बैठकर पेड़ के नीचे क्यों बैठता हूँ ? इसका कारण है की जिस पेड़ के नीचे मैं बैठता हूँ वहां से मैं पूरे स्कूल को देख पाता हूँ चाहे वो बच्चों की कक्षाएं हों या फिर आसपास की अन्य जगह | दरअसल हमारा स्कूल बिल्कुल सड़क के किनारे पर स्थित है जिससे हर समय किसी दुर्घटना का भय रहता है | मैंने कई बार लोक निर्माण विभाग को विद्यालय के चारों ओर चारदीवारी बनाने को कहा और अब इसके लिए विभाग ने कार्यवाही भी शुरू कर दी है |

हमारे स्कूल में हर वर्ष विद्यालय प्रबंधन समिति का गठन किया जाता है | वर्ष 2014 के अप्रैल माह मे नयी विद्यालय प्रबंधन समिति का गठन किया गया है | इसमें मेरे अलावा 6 और सदस्य हैं | इस विद्यालय में आने के बाद मैंने विद्यालय प्रबंधन समिति के साथ मिलकर बच्चों के लिए एक पुस्तकालय कक्ष का निर्माण करवाया है जिससे आज बच्चे अपनी मनपसंद की पुस्तकें वहां बैठकर पढ़ते हैं | मेरा ये कर्तव्य रहता है कि जो भी विभाग से हमें निर्देश आते हैं वह मैं अपनी विद्यालय प्रबंधन समिति के सदस्यों के साथ और मेरे दूसरे विद्यालयों के साथ सांझा करूँ | करता हूँ ताकि समय रहते काम को सही तरीके से पूरा कर सके | हमारे विद्यालय प्रबंधन समिति के सदस्य बहुत रूचि से कार्य करते हैं और जब भी मैं कोई बैठक बुलाता हूँ तो वे हमेशा आते हैं | कम शब्दों में कहू तो संगठन में ही शक्ति है |

कई बार मुझे अपने दूसरे स्कूलों के अध्यापकों के फ़ोन आते हैं वे इस बात से परेशान हो जाते हैं की सरकार ने हमें अध्यापन कार्य के अलावा बहुत से कार्य दिए हैं जिससे बच्चों की पढ़ाई पर बुरा असर होता है | इस बात से मैं भी सहमत हूँ पर मैंने उन्हें ये समझाया कि क्यों ना हम ऐसा करें की सुबह जल्दी या फिर शाम को आधा घंटा देर रुकने से वही कार्य हम आसानी से कर सकते हैं | तो इस बात को ध्यान में रखकर मेरे बाकी अध्यापक इसी तरह से कार्य कर रहे हैं |

आज शिक्षा का व्यवसायीकरण हो रहा है | अभिभावक निजी स्कूलों की चकाचौंध में बच्चों को सरकारी स्कूलों से निकाल रहे हैं | लगातार निजी विद्यालयों के नामांकन में बढ़ोतरी हो रही है और सरकारी स्कूल निरंतर खाली हो रहे हैं ! हमें इसके पीछे के कारणों को बहुत संजीदगी से सोचना पड़ेगा वरना एक दिन ऐसा आयेगा की सरकारी विद्यालय बिलकुल खाली हो जायेंगे और निजी विद्यालय अपने मर्जी मुताबिक़ अपनी शर्तों पर माता-पिता को विवश करते रहेंगे | मेरा अपना व्यक्तिगत मानना है की जब तक हमारे स्कूलों में मानिटरिंग नहीं होगी तब तक काम में गति नहीं आएगी चाहे वह शिक्षक के ऊपर हो, बच्चों की पढ़ाई को लेकर हो या फिर चाहे बच्चों के खाने को लेकर हो | आज भी बहुत सरकारी अध्यापक ऐसे हैं जो अपना कार्य सही ढंग से नहीं कर रहे जिसकी वजह से हमें भी परेशानी का सामना करना पड़ता है | आज हमें समाज के लोगों को आगे लाकर उनकी जवाबदेही को तय करने की आवश्यकता है | अगर शिक्षक और समुदाय अपने दायित्व समझेगें तभी शिक्षा में सर्वागीण विकास हो सकेगा | तभी हम कह सकते हैं की हाँ हम एक आदर्श भारत में रहते हैं और हम अपने बच्चों को एक उज्जवल भविष्य दे सकते हैं |

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