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श्रृंगार से बढ़कर स्वच्छता

Dinesh Kumar

11 July 2019

कहते हैं कि जब इंसान किसी चीज को एक बार करने की ठान लेता है तो फिर कोई चीज उसे वह हासिल करने से नहीं रोक सकती|

एक ऐसी ही वास्तविक कहानी बिहार के वैशाली जिला में स्वयं सहायता समूह की एक दीदी की है जिसने स्वच्छता के अर्थ को समझा और उसे हासिल किया|

दीदी के अनुसार उसने खुले में शौच जाने का वहिष्कार ऐसी स्थिति में किया जब एक तरफ उसका विकलांग पति तथा ऊपर से गरीबी इस कदर थी कि अपने परिवार के लिए दो वक्त की रोटी जुटाने के लिए भी संघर्ष करना पड़ता था| दीदी ने स्वयं सहायता समूह से जुड़कर बचत का काम शुरू किया था| जब वह स्वच्छता के महत्व को समझ गई तो उसने मन में यह ठान लिया कि चाहे अब कुछ भी हो लेकिन अब वह भी शौचालय का निर्माण करायेगी|

स्वच्छ भारत अभियान के तहत शौचालय निर्माण हेतु सहयोग राशि के रूप में प्रत्येक परिवार को 12000/ रुपये देने का प्रावधान है| दीदी का कहना है कि इसके लिए उसने हर तरह का प्रयास किया, सरकारी दफ्तर के चक्कर लगाये, अपने पंचायत के मुखिया से अनुरोध किया और अंत में अपने परिवार वाले से सहयोग माँगा| काफी लोगों ने उसे पूर्वजों का उदाहरण दिया कि पूर्वज मल त्याग के लिए खेत खलिहान में खुले में शौच के लिए जाते थे|

दीदी बताती हैं कि उसे अपने विवाह में कुछ गहने/जेवर मिले थे, जिन्हें उसने संभालकर रखा था ताकि जरुरत आने पर वह उनका इस्तेमाल कर सके| दीदी के अनुसार, उसने सरकार की तरफ से मिलने वाली राशि का कुछ दिनों तक इंतजार किया परन्तु सरकार की तरफ से स्वच्छता दूत के माध्यम से शौचालय निर्माण के लिए कितनी सामग्री की जरूरत होगी, यह दीदी को पता था| अंत में जाकर उसने पति और परिवार से चुपके अपने गहने/जेवर बेच डाले और उन पैसों से शौचालय का निर्माण के लिए आवश्यक सामग्री खरीद डाली|

स्वयं दिन-रात मेहनत कर गढ्ढा खोदा और शौचालय का निर्माण करवाया| फिर क्या दीदी समाज के लिए एक उदाहरण बन गयी| दीदी बताती हैं कि अब उसे तथा उसके पति को घर से बाहर खुले में शौच के लिए नहीं जाना पड़ता| इस तरह दीदी ने अपने शौक की वस्तु को त्याग कर स्वच्छता को अपना लिया| दीदी समूह से जुड़े होने की वजह से दूसरों को प्रेरित करने में सक्षम हैं|

दीदी बताती है कि अब उन्हें सरकार से मिलने वाली 12000 रुपये की राशि भी प्राप्त हो चुकी है| देरी हुई लेकिन मिल गयी| अपने गहने जेवरात बेचे जाने को लेकर दीदी बोलती हैं कि श्रृंगार से कहीं बढ़कर ही तो स्वच्छता है|

अतः इस प्रेरणादायक कहानी से एक चीज़ समझ में आती है कि यदि हमें सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ़ लड़ना है तो स्वयं भी जागरूक होना जरुरी है तथा दूसरों को भी उसके प्रति प्रेरित करना होगा| यह अवश्य ध्यान में रखना होगा कि सरकार ने यदि किसी योजना के तहत जो भी मानक तय किये हैं, उनका अवश्य अनुसरण करते हुए योजना का लाभ उठाना चाहिए|

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