“हमारा पैसा……हमारा स्कूल”
4 July 2014
कुछ नया करने से सीखने और परिणामों को जानने का मौका मिलता है | इसलिए कुछ नया जरूर करना चाहिए | इसी बात को मद्देनज़र रखते हुए हमारी टीम द्वारा “हमारा पैसा हमारा स्कूल” के अभियान को शुरू किया गया | जो की 4 राज्यों के 4 ज़िलों में किया जाना था, जिसमे महाराष्ट्र (सातारा) मध्य प्रदेश (सागर) तेलंगाना (मेदक) और राजस्थान (जयपुर) शामिल है | जिसमे करीब 30 स्कूलों में यह कार्यक्रम प्रायोगिक स्तर पर करने की योजना बनायीं गई |इस कार्यक्रम से सम्बंधित कार्यशाला भोपाल में आयोजित की गई | जिसमे हमारे कार्यक्रम समन्वयक एवं चार राज्यों के पैसा समन्वयक उपस्थित थे | क्योंकि यह प्रायोगिक सागर में करना था, इसलिए हमारे द्वारा इसका पूर्व अभ्यास किया गया | जिसमे हम लोगों द्वारा इस योजना को किस प्रकार से करने से हमें अच्छे परिणाम प्राप्त हो सकते है इसपर विस्तृत चर्चा की गई | कच्ची सामग्री बनायीं गई जिसे हम हमारे प्रायोगिक स्कूलों में उपयोग करने वाले थे | प्रायोगिक स्कूलों का चयन पहले से किया गया था | वहाँ के मुख्याध्यापक को मिलकर कार्यक्रम के बारे में बताया गया था | प्रायोगिक के दिन हम लोगों द्वारा 2 स्कूलों में जाना हुआ प्राथमिक विद्यालय उदयपुरा और प्राथमिक विद्यालय सिद्गुवा |प्राथमिक विद्यालय सिद्गुवा :-
स्कूल में जब हमारे द्वारा प्रवेश किया गया तों हमने देखा की, वहाँपर मुख्याध्यापक और शिक्षकों के अलावा और कोई एस.एम.सी सदस्य उपस्थित नहीं है | मुख्याध्यापक से चर्चा करने के उपरांत उन्होंने कहाँ की, सभी लोग मजदूरी के लिये गए है, अभी कोई नहीं आएगा | यह सुनकर हम लोग थोड़े परेशान हो गए | पर मराठी में एक मन है, “केल्याने होत आहे रे …. आधी केलेची पाहिजे” इसका मतलब है करने से होगा पर पहले उसे करके देखना चाहिए | इसी को ध्यान में रखते हुए हमने मुख्याध्यापक जी द्वारा एस.एम.सी. के अध्यक्ष को स्कूल में बुलाया और उनके साथ पूरे गाँव का भ्रमण किया | सभी एस.एम.सी. सदस्यों के घर जाकर उन्हें बैठक में आने के लिये कहाँ | 15 मिनिट बाद हमने देखा की, जिन जिन घरों में हमें एस.एम.सी. सदस्य मिले उन सभी घरों से लोग स्कूल आ गए थे | सभी लोगों को देख हमें भी काफ़ी खुशी हुयी |
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हमारे द्वारा कार्यक्रम की शुरुवात मैं हमने अपना परिचय दिया और सभी का परिचय लिया | हमने स्कूल में आने की वजह को बताया, और कहाँ की हम लोग पैसा सर्वे करते हैं | इस पैसा सर्वे मैं हम क्या–क्या जानकारी लेते है वोह भी बिस्तृत रूप से सबों को बताया |
आगे हम लोग बढ़ने ही वाले थे की, शिक्षकों को द्वारा एस.एम.सी. के लोगों और गाँव के लोगों पर दोषारोप शुरू हो गया | शिक्षकों ने सबों को सुनने लगा की वोह अपने बच्चों को स्कूल में नहीं भेजते है, स्कूल के शौचालय का दरवाजा तोड़ देते हैं, स्कूल के पीछे नशा करके जुवा खेलते रहते है, इत्यादि | शिक्षकों ने यह भी कहाँ की लोग अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूल में भेजते है, वहाँ हर महीने की बैठक में शामिल होते है पर सरकारी स्कूल में बैठक में आना नहीं चाहते | इसप्रकार के आरोपों से हमारा बैठक शुरु हुई |
फिर हमने माहोल को अपने नियंत्रण मैं लेते हुए समझाया की इसप्रकार की समस्या तों ज्यादा टार स्कूल मैं होती रहती है | मैं ने सबोंको इसी समस्याओ को कैसे हल करे इसकेलिए सोचने कहाँ और इसपर चर्चा के लिए धयान आकर्षित किया |
तभी हम लोगों द्वारा “कर” और “शिक्षा के ऊपर कर” को लेकर चर्चा शुरू हुई | हमने बताया की अगर कोई भी अभिभाबक अपना बच्चा प्राइवेट स्कूल में भेजते हैं तोह वोह सीधा अपने हातो से हर महीने स्कूल का फीस देते है | पर क्या उनको पता है, सरकारी स्कूल में भी वोह अपने जेब से पैसा देते है | इसपर सबकोई पूछ ने लगा, “कैसे?”
तों हमने बताया की हर कोई अपने घर के लिए कोई भी वस्तु खरीदते है तब उसके उप्पर सब कोई सर्कार को कर देते हैं, २ प्रतिशत शिक्षा का लिए भी कर देते है | जैसे साबुन, तेल, चीनी, तेल इत्यादि | मोबाइल के रिचार्ज पर जब हम 10 रुपये का रिचार्ज करते है तब 7 रुपये ही मिलता है, जो 3 रूपया कटता है वह भी एकप्रकार से “कर” कहलाता है | इस प्रकार से सभी को समझाया गया की हम सब कोई सर्कार को कर देते हैं | और सर्कार उसी कर मैं से हमारे स्कूल मैं अनुदान भेजते हैं |
इसके बाद पोस्टर के माध्यम से सर्व शिक्षा अभियान के अनुदानों के बारे में सबों को जानकरी दी गई | चित्र होने की वजह से लोग अच्छे से अनुदानों के बारे में जान सके | जैसे की, यह अनुदान किस-किस कार्य के लिये खर्च कर सकते है | लोगों का उत्साह बढ़ रहा था | फिर हमारे द्वारा ज़िला एवं प्राथमिक विद्यालय सिद्गुवा के बिच तुलना की गई | ज़िला में हर साल स्कूल पर कितना पैसा औसतन खर्च किया जाता है और और सिदगुवा स्कूल में कितना पैसा खर्च होता है | ज़िला से स्कूल में पैसा ज्यादा खर्च हो रहा है तों, वह किन किन चीजों पर खर्च हो रहा है इसपर बातचीत की गई |
हर सदस्य उस समय चकित रह गए जब उन्हें हमारे माध्यम से पता चला की उनके स्कूल मैं प्राय १९ लाख रूपया २०१२-१३ मैं खर्च हुआ | जब की पुरे सागर जिला मैं औसतन ६ लाख ही मिला | यह जानकारी सब के लिए पहलीबार मिला |
इस मुद्दे पर शिक्षकों का कहना था की, सरकार उन्हे इतना वेतन देती है, इतना खर्च करती है पर गाँव के लोग अपने बच्चों को स्कूल भेजना नहीं चाहते | इसी प्रकार हमने ज़िला और स्कूल में बुनियादी सुविधाओ को लेकर भी चर्चा की | “शिक्षा का अधिकार” कानून के तहत ज़िला में और स्कूल में क्या क्या कमी है, इसके बारे में चर्चा की गई | चार दीवारी और लडको के शौचालय में बहुत कमी दिखाई दे रही थी, जो की सिदगुवा स्कूल में भी नहीं थी | अच्छी बात यह थी की, उपयोग करने योग्य ब्लैक बोर्ड सिर्फ़ 1 प्रतिशत स्कूल में नहीं थे | उपयोग करने योग्य ब्लैक बोर्ड स्कूल में भी थे | स्कूल में शिक्षक छात्र अनुपात काफ़ी अच्छा था |जब बुनियादी सुविधाओं के उप्पर बात की गई, तब पता चला की, शिक्षा के अधिकारों से सम्बंधित और काफ़ी चीज़ों पर काम करने की ज़रूरत थी |
तभी सबके सामने एक सवाल रखा गया |
अगर आपको 6 लाख रुपये दिए जाए तों, आप उसे किस प्रकार से खर्च करेंगे ? पहले लोगों द्वारा बताने में संकोच जताया गया | लेकिन बाद में जैसे जैसे उन्हें पूछा गया वह खुलकर बताने लगे | सबसे पहले लोगों ने बच्चों के लिये थाली की मांग की, पियेजल के लिए हैण्डपम्प, फिर बच्चों को खेलने के साधन, बिजली, स्कूल देख भाल के लिए चपरासी, शौचालय, चारदीवारी, कक्षाकक्ष की मांग की थी |
फिर सभी लोगों से पूछा गया की अगर उनको इन सभी जरुरत को प्राथमिकता देनी है तों वोह कैसे देंगे | क्योंकि सभी बाते एकदम से तोह नहीं मिल सकती | तब लोगों ने चिंता कर के कहाँ की पहले उने पियेजल के लिए हैंडपंप चाहिये, दूसरा बच्चों के खेलने के लिये खिलोने, स्कूल देख भाल के लिए चपराशी, चारदीवारी , बिजली, लडको के लिये शौचालय, कक्षाकक्ष होने चाहिए | थाली स्कूल में उपलब्ध थे पर स्कूल में पानी की व्यवस्था नहीं होने की वजह से उसे प्रयोग में नहीं लाया जा रहा था | सवाल पूछने पर पता चला की लोगों में दिलचस्पी बढ़ रही है, मुख्याध्यापक और शिक्षक भी इसे देख रहे थे |
मुख्याध्यापक सर, से हमने स्कूल विकास योजना एस.डी.पी के बारे मे बात की | उनसे कहाँ की वोह जो एस.डी.पी बनाते है उसमे भी वोह यही बातों को बतानी पड़ती है | जैसे की स्कूल में किन किन चीजों की आवश्यकता है | यह जानकारी फिर एस.डी.पी मैं भरकर सर्कार को भेजना पड़ता है |
हम ने कहाँ की अगर वोह एस.एम.सी. के लोगों को बुलाकर, हम जैसे चर्चा की उसी प्रकार, गतिविधि के द्वारा जानकारी आधे या 1 घंटे में प्राप्त कर सकते हैं और स.डी.पी फॉर्मेट को भरकर भेज सकेंगे |
स बात से मुख्याध्यापक सर सहमत हुये, उन्होंने कहाँ की अगर लोग बुलाने पर बैठक में उपस्थित हो जाते है, तों वोह इसप्रकार की गतिविधि द्वारा इस साल एस.डी.पी. बना सकते है | मुख्याध्यापक जी सकारात्मक रूप से इसे देख रहे थे |
इन सभी मुद्दों पर बातचीत होने के उपरांत हमारे द्वारा एस.एम.सी के सदस्यों को पूछा गया की, क्या यहाँ पर आने से उनको अधिक जानकरी प्राप्त हुई है या नहीं | इसपर सभी सदस्य ने कहाँ की वोह बहुत साडी जानकारी पायें | उनको हे गतिबिधि बहुत अच्छा लगा | जातें जातें हम ने भी सभी सदस्य को धन्यवाद देते देते कहाँ की अगर वोह हर महीने की बैठक में आकर अपना 20 या 30 मिनिट का समय देते है तों यह स्कूल विकास के लिये बहुत अच्छा होगा | इस तरह बैठक का समापन किया गया | प्राथमिक विद्यालय उदयपुरा :-
इस विद्यालय में रामरतन, वेणुगोपाल एवं एन्थोनी छेत्री प्रायोगिक अभ्यास के लिये पहुँचे तब मुख्याध्यापक ने लोगों को बुलाना शुरू किया एस.एम.सी के कूल 17 में से 10 सदस्य बैठक के लिये पहुँचे | इनमें ग्राम पंचायत के सरपंच भी शामिल थे | स्कूल में सबसे पहले परिचय से शुरुवात की गई | सबसे पहले हमारे द्वारा अपना परिचय दिया गया और बाद में सबका परिचय किया गया | इसके उपरांत संस्था के बारे जानकारी दी गई, और बताया गया की, संस्था के द्वारा हम पैसा कार्यक्रम के अंतर्गत ज़िला अध्ययन रिपोर्ट बनाते है, जिसमे हम स्कूल से अलग अलग प्रकार की जानकरी एकत्रित करते है | जैसे, अनुदान से सम्बंधित, बुनियादी सुविधाओ से सम्बंधित, बच्चों का नामांकन उपस्थिति, शिक्षकों का नामांकन उपस्थिति, इत्यादी पर काम करते है |तय योजनानुसार रामरतन और एन्थोनी जी ने चर्चा शुरू की | वेणुगोपाल चर्चा के नोटस एवं छायाचित्र लेने में व्यस्त रहें | बैठक के दौरान कुछ लोग आते रहे एवं कुछ लोग जाते रहे |
बैठक की शुरुवात में लोगों की समस्या को लेकर चर्चा शुरू हुई | जिसमे से एक मुद्दा था, गाँव में पानी की समस्या | इसके बाद पैसा कार्यक्रम के अंतर्गत हम किन मुद्दों पर काम करते है, इसके लिए हमारे 5 सवालो को लोगों के सामने रखा गया | कोष प्रवाह किस प्रकार से केंद्र से राज्य, राज्य से ज़िला और ज़िला से स्कूल तक हस्तांतरीत होता है | इसपर मुख्याध्यापक द्वारा बताया गया की, स्कूल में अलग अलग प्रकार के अनुदान आते है | अनुदान तों प्राप्त हो जाते है पर वह सिर्फ़ आवश्यकता के आधार पर खर्च किये जाते है | क्योंकि हमें स्पष्ट नहीं होता की, कौनसा पैसा किस कार्य के लिए खर्च करना है | पैसा खर्च करने के लिए कौन जिम्मेदार है, सरपंच और एस.एम.सी. अध्यक्ष तभी हमारे द्वारा पैसा के पोस्टर को दिखाकर कौनसा पैसा किस चीजों पर खर्च किया जाता है, इसके बारे में जानकारी बताई गई | और यह पैसा कहाँ से आता है, इसके लिए “शिक्षा का कर” को लेकर उदहारण दिए गए | ज़िला में और स्कूल में हर साल कितना पैसा आता है इसपर चर्चा की गई | शिक्षा का अधिकार के तहत ज़िला में और स्कूल में क्या क्या कामिया है इसपर बातचीत की गई | अगर हम उदयपुरा स्कूल की बात करे तों वहाँ पर सिर्फ़ एक आम शौचालय था | P { margin-bottom: 0.21cm; direction: ltr; color: rgb(0, 0, 0); widows: 2; orphans: 2; }
इसलिए बैठक के अंत में जब प्रतिभागियों की प्रतिक्रिया से पता चला कि लोगों को जो जानकारी हमने दी है वह लोगों को समझ आ रही है एवं उनके लिये काफ़ी रुचिकर है | हमने उनसे पूछा कि अगर आपके विद्यालय को सालभर में मिलने वाला 13,68,000 रुपये आपको खर्च करने के लिए दिया जाए तों आप किन चीजों पर इसे खर्च करेंगे | उनके जवाब की प्राथमिकताएँ इस प्रकार थी |
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चार अध्यापक नियुक्त
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पूर्ण रूप से निर्मित चारदीवारी
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अलग से मुख्याध्यापक कक्ष
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नवचारी शिक्षण पद्धति
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पेयजल की व्यवस्था
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खेल सामग्री
पर वोह निश्चित थे की वोह चार अध्यापक नियुक्त ही करेंगे |