
महामारी से बिहार के लिए सीख
17 March 2021
कोरोना महामारी ने सरकार के साथ-साथ हम नागरिकों को भी सोचने पर विवश कर दिया है कि क्या हमारा देश, हमारा समाज इस तरह की त्रासदियों से निपटने के लिए तैयार है ?
मैं बिहार से हूँ, इसीलिए अपने इस लेख में बिहार के संदर्भ में ज़्यादा बात करूँगा | बिहार जैसे बड़े राज्य में जहाँ एक तरफ गरीबी, बेरोज़गारी जैसी समस्याएं पहले से ही व्यापक हैं, वहां पर अचानक से लॉकडाउन में सब एक दम से रुक जाना हर किसी के लिए एक बड़ी चुनौती था | बिहार में प्रशासन भी लॉकडाउन का पालन बहुत ही कड़ाई से करवा रहा था | इसी दौरान एकाउंटेबिलिटी इनिशिएटिव की इनसाइड डिस्ट्रिक्स श्रंखला के अंतर्गत हमने विभिन्न क्षेत्रों में चुनौतियों एवं नवाचार को समझने के लिए ज़मीनी स्तर पर कार्य कर रहे अधिकारियों एवं फ्रंटलाइन वर्कर्स के साथ विस्तृत साक्षात्कार किए |
उन्हीं चर्चाओं एवं सरकार द्वारा की जाने वाली गतिविधियों ने कुछ ऐसे बिंदु उजागर किये हैं जिन पर हमें गौर करना चाहिए:
- महामारी ने यह स्पष्ट कर दिया है कि स्वास्थ्य सेवाओं को अधिक से अधिक मज़बूत बनाने की ज़रूरत है | इसके लिये ज़रूरी है कि ब्लॉक स्तर के साथ-साथ पंचायत स्तर पर भी स्वास्थ्य सेवाओं की आधारभूत संरचनाओं को मज़बूत किया जाए ताकि लोगों को छोटी-मोटी बीमारियों के लिए जिला या प्रखण्ड अस्पतालों में चक्कर ना काटने पड़े |
- इस महामारी के दौरान ऑनलाइन शिक्षा की उपयोगिता समझ में आयी | वैशाली, बिहार के एक हेडमास्टर का कहना था की ऑनलाइन शिक्षा सिर्फ उन चुनिंदा बच्चों को मिल पा रही है जिनके पास संसाधन है, यह हर बच्चे के लिए नहीं है | सुपौल, बिहार के खंड शिक्षा अधिकारी ने भी निराश होते हुए यही कहा कि दूरदर्शन या ऑनलाइन माध्यम सभी के लिए नहीं है तथा वे स्कूल खुलने का इंतज़ार कर रहे थे |
- सरकार द्वारा कालाबाज़ारी एवं जमाखोरी पर नियंत्रण लगाने की व्यवस्था को भी मज़बूत किया जाना चाहिए क्योंकि लॉकडाउन में मूलभूत चीजों पर अधिक पैसा वसूलने जैसी घटनाएं भी देखने को मिलीं |
जहाँ इस महामारी ने मौजूदा संस्थागत कमियों को उजागर किया है, वहीं इसने सार्वजनिक प्रणाली को बेहतर बनाने के अवसर भी दिखाए हैं ।