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सच्चाई की जीत

Dinesh Kumar

1 January 1970

This is the fourth part of an eight-part series on the challenges and life hacks in experiencing and accessing government benefits and services.

कुछ दिन पहले वैशाली जिला के एक पंचायत में अपने अधिकार कि मांग को लेकर ग्रामीण जनआंदोलन कर रहे थे | मुद्दा था, सार्वजनिक जन वितरण प्रणाली (PDS) योजना जो भारत और राज्य सरकार के संयुक्त सहयोग से वर्षो से चलाई जा रही थी | इस योजना से करोड़ो ऐसे परिवार (भूमिहीन कृषि मजदूरों,  रिक्शा चालकों) जिन्हें दो वक्त के खाने के लिए अनाज अत्यधिक रियाती दर पर उपलब्ध किया जाता था | सरकार संकल्पित है की प्रत्येक परिवार को उचित दर पर योजना का लाभ पहुचाया जाए | परन्तु जमीनी हकीकत कुछ और था , सरकारी दावे खोखले साबित हो रहे थे | अनाज पूरी तरह उपलब्ध नहीं हो पा रहा था |

पंचायत के कुछ सीमांत किसान और मजदूर राशन कार्ड लेकर सार्वजनिक वितरण प्रणाली केंद्र पर गए | जहां उन्हें उनके परिवार के लिए अत्यधिक रियाती दर 2 रु. प्रति किलो गेहूं और 3 रु. प्रति किलो चावल उपलब्ध कराया जाना था | PDS चलाने वाले डीलर उन्हें अनाज उपलब्ध करवाते थे | परन्तु जितने महीने का राशन उन्हें मिलना चाहिए था और जितना किलो मिलना चाहिए था उतना नही मिल पाता था | यह स्थिति वर्षो से चली आ रही थी | मजदुर और किसानों के द्वारा आवाज उठाए जाने पर भी कुछ असर नही हो रहा था |

हमेशा कि तरह जन वितरण प्रणाली (PDS) के संचालक के द्वारा उन्हें यह बाताया जाता था कि सरकार के द्वारा 12 महीना के लिए अनाज आवंटित नही किया जाता है | साथ ही साथ वजन में भी कम दिया जाता है | अत: संचालक आपको प्रत्येक महीना अनाज उपलब्ध नही करा सकता है | हमेशा की तरह वह व्यक्ति वजन में कम अनाज लेकर वापस अपने घर आ जाता था |

एक दिन वह लाचार और विवश मजदुर शिकायत लेकर (MO) प्रखंड आपूर्ति पदाधिकारी के पास गया | जहां उसे निराशा हाथ लगी | उसे जो संचालक के द्वारा बाताया गया था वही बाते  MO के द्वारा भी बताई गयी | इन्होने ने हार नहीं मानी| एक दिन पंचायत के सभी मजदुर मिलकर प्रखंड विकास पदाधिकारी के पास शिकायत लेकर गए , और लिखित शिकायत भी दी | उनके द्वारा किए गए शिकायत पर अमल नही होने के कारण वे सभी सड़क पर बैठ गए | PDS संचालक (डीलर) के खिलाफ जांच की मांग की | सड़क बंद हो जाने से आम से खास व्यक्ति तक की परिवहन व्यवस्था बाधित हो गई | जिसके कारण प्रशासन भी दहशत में आ गए थे |

प्रखंड विकास पदाधिकारी से लेकर जिला स्तर के पदाधिकारी तक को धरना स्थल पर पहुचना पड़ा | स्थिति ऐसी हो गई कि उस संचालक के खिलाफ जांच कि गई| धरना स्थल पर माहौल ऐसा बन गया कि प्रत्येक उपस्थित व्यक्ति के अंदर संचालक के प्रति आक्रोश और शिकायत के भंडार का चिट्ठा खुल गया |

जिला पदाधिकारी के द्वारा जाँच टीम बैठाई गयी | पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली से संबंधित रिकॉर्ड सार्वजनिक करने के लिए सामाजिक लेखा परीक्षा और सतर्कता समितियां बनाई गयी । और अंत में जांच के बाद सबकुछ ठीक हो गया | इस प्रकार से संचालक के द्वारा प्रत्येक महिने उचित दर पर पक्के वजन के साथ अनाज उपलब्ध कराया जाने लगा |

नियमानुसार संचालक को प्रत्येक महिना प्रत्येक व्यक्ति को 5 किलो अनाज देना चाहिए | यदि किसी को प्राप्त नही होता है तो उसे प्रखंड या जिला में शिकायत निवारण केंद्र में शिकायत दर्ज कराना चाहिए | शिकायत दर्ज करने में कितनी ही दिक्कत क्यों न आए लेकिन आपका मुद्दा अगर सही है तो उस पर अमल जरुर होगा |

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