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कोरोना वायरस महामारी से बच्चों का बचाव

Indresh Sharma

25 March 2020

आज जिस तरह से कोरोना वायरस ने विकराल रूप लिया है, उससे समझ में आता है कि अब सरकार के लिए अस्पतालों में भौतिक संसाधनों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के साथ-साथ लोगों को नियमित जागरूक करना अत्यंत आवश्यक है| लेकिन सवाल ये उठता है कि क्या हमारे देश का हर बच्चा वायरस का सामना करने के लिए स्वस्थ्य है?

स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार की व्यापक राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण 2016-18 की रिपोर्ट के अनुसार भारत के बच्चे पूरी तरह से स्वस्थ नहीं हैं| रिपोर्ट बताती है कि भारत में 0-4 वर्ष के औसतन 35 प्रतिशत बच्चे अपनी आयु के अनुरूप अविकसित हैं तथा बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश सहित कई सबसे अधिक आबादी वाले राज्यों में यह औसत 37 प्रतिशत से 42 प्रतिशत है। रिपोर्ट के आंकड़े यह भी बताते हैं कि भारत में 0-4 वर्ष के औसतन 33 प्रतिशत बच्चे अपनी आयु की तुलना में कम वजन के हैं| 1-4 वर्ष के पूर्व-विद्यालयी 41 प्रतिशत बच्चे, 5-9 आयु वर्ग के 24 प्रतिशत, स्कूल जाने वाले तथा 10-19 आयु वर्ग के किशोर-किशोरियों में कई बीमारियाँ नियमित रूप से पाई जा रही हैं। इन्हीं वजह से अधिक मामलों में कुपोषण बाल-मृत्यु का एक महत्वपूर्ण कारण बनता है|

जाहिर तौर पर यदि भविष्य में आने वाली युवा पीढ़ी ही इस तरह से अस्वस्थ होगी तो वे किस तरह से बीमारियों से लड़ पाने में सक्षम हो पायेंगे? खानपान की खराब आदतें, जैसे आयरन व विटामिन-सी से भरपूर भोजन (फल व सब्जियां) न खाना, और स्वास्थ्य सेवाओं तक सीमित पहुंच, खून की कमी या एनीमिया के बड़े कारण हैं। किशोरियों में एनीमिया (40 प्रतिशत), उनके समकक्ष किशोरों में एनीमिया (18 प्रतिशत) की तुलना में अधिक देखने को मिला है| इससे, विशेष तौर पर इन आयु वर्ग की श्रेणियों में, अपनी आयु के अनुरूप विकसित न होने की स्थिति बनती है और उनकी रोग प्रतिरोधक शक्ति भी कम रहती है|

भारत सरकार के पोषण अभियान 2018-22 के महत्वाकांक्षी लक्ष्य हैं, जिनमें शामिल हैं – सालाना बच्चों में कुपोषण की समस्या (स्टंटिंग और ओवरवेट) कम हो और लो-बर्थ वेट, यानि जन्म के समय कम वजन की समस्या को भी सालाना 2 प्रतिशत तक कम किया जाए। इसके अलावा, सभी आयु वर्गों में एनीमिया को 3 प्रतिशत तक कम करना भी पोषण अभियान का मुख्य लक्ष्य है, जिसे भारत में पोषण के लिए व्यापक स्तर पर जन आंदोलन चलाकर हासिल किया जाएगा|

हालाँकि आज की स्थिति में पूरा देश लॉकडाउन पर है और पोषण की एहम सेवाएं प्रभावित हैं। जिस तरह से व्यापक राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण 2016-18 रिपोर्ट में स्कूल जाने की आयु वाले बच्चों और किशोरों पर कुपोषण का खतरा बताया गया है तो ऐसे में स्पष्ट है कि हम कोरोना वायरस की समस्या को जितना समझ रहे है, ये उससे कई गुना बड़ी हो सकती है|

मौजूदा समय में जिस तरह से सरकार, मीडिया एवं अन्य संस्थाओं की तरफ से लोगों को स्वच्छता के प्रति संजीदा रहने, अपने हाथ-मुंह साफ़ रखने को लेकर नियमित हिदायतें दी जा रहीं हैं, उनका पालन किया जाना आवश्यक है| वैसे भी अक्सर नियमित हाथ धोने से कई तरह की बीमारियों से आसानी से बचा जा सकता है जैसे टाईफाईड, दस्त, निमोनिया, पीलिया, हैजा, आँख की बीमारी आदि|

उम्मीद की जा सकती है कि समाज के हर वर्ग द्वारा स्वच्छता के सभी आयामों को अपने दैनिक जीवन में अनिवार्य रूप से इस्तेमाल किया जायेगा तथा बच्चों को ये सब चीजें उनकी जीवन शैली में शामिल करने के लिए नियमित प्रेरित किया जायेगा, ताकि कई जानों को संक्रमण से बचाया जा सके|

भारत सरकार द्वारा दी गई सलाह के बारे में जानने के लिए यहाँ देखें|

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