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कोरोना आपदा और बिहार में शिक्षा की स्थिति

Dinesh Kumar , Mridusmita Bordoloi

10 May 2020

पिछले चार महीनों से COVID-19 का प्रकोप इस तरह से फैल रहा है कि लगभग पूरे विश्व के साथ हमारे देश में भी आपदा वाली स्थिति है | इस परिस्थिति में विद्यालय बंद होने के कारण बच्चों की पढ़ाई पर भी काफी प्रभाव पड़ा है और पूरी शिक्षा व्यवस्था में अनिश्चयता के बादल छा गए हैं | निजी और सरकारी विद्यालयों में ऑनलाइन पढ़ाई की पहल कर दी गयी है, लेकिन पिछड़े राज्यों में इसको लागू करना मुश्किल होगा | अगर सिर्फ बिहार को देखें तो सरकारी विद्यालयों में नामाँकित बच्चों को शिक्षा प्रदान करने के लिए राज्य सरकार को कितना प्रयास करना पड़ेगा? 

इस बीमारी कि संक्रमण-प्रक्रिया को देखते हुए लगता है कि आगे के तीन से चार महीनों तक बच्चों के लिए पहले जैसे विद्यालयों में शिक्षा मिल पाना मुश्किल होगा | बिहार सरकार ने कोरोना वायरस के प्रकोप को देखते हुए बिना वार्षिक परीक्षा दिए ही कक्षा 1 से 11 तक के विधार्थियों को अगली कक्षा के लिए प्रोन्नति दे दी है | लॉकडाउन के समय सरकार ने छात्रों के लिए जो और कदम उठाये हैं, उनमें से एक महत्वपूर्ण कोशिश है रेडियो और  दूरदर्शन के माध्यम से पठन-पाठन जारी रखना | बिहार दूरदर्शन (बिहार DD) के माध्यम से वर्ग 9 से 12 तक के बच्चों को पढ़ाने के लिए शिक्षा विभाग, बिहार शिक्षा परियोजना परिषद, UNICEF और Eckovation  (ऑनलाइन शिक्षण मंच) ने मिलके पाठ्यक्रम तैयार किया है और 20 अप्रैल से ‘ मेरा दूरदर्शन, मेरा विद्यालय’ नाम से कार्यक्रम प्रसार कर रहे हैं | बिहार शिक्षा परियोजना परिषद् द्वारा 3० अप्रैल को जारी किये गए एक  पत्र के अनुसार 4 मई से वर्ग 6 से 8 वर्ग के बच्चों के लिए भी दूरदर्शन के माध्यम से पाठ्यक्रम का प्रसार शुरू हो गया है | 

इसके साथ ही सभी शिक्षकों और बच्चों को निर्देश दिए गए हैं के वे उन्नयन मोबाइल एप्लीकेशन – जो ‘मेरा मोबाइल, मेरा विद्यालय’ नाम से जाना जाता है, अपने मोबाइल फोन पर डाउनलोड करें | शिक्षको को इस app के ज़रिये 6 से 12 वर्ग के बच्चों की पाठ्यक्रम से सम्बंधित जिज्ञासाओं का उत्तर देने का निर्देश हैं | सरकार के यह प्रयास निसंदेह सराहनीय है | परन्तु इस प्रयास को वास्तविकता में सफल बनाने में कई मौजूदा चुनौतियाँ हैं |

पहली चुनौती है सभी परिवारों को अपने बच्चों के लिए TV उपलब्ध करवाना | इंडियन रीडरशिप सर्वे (IRS) के अनुसार बिहार में सन 2017 में सिर्फ 22 प्रतिशत घरों में टेलीविज़न सेट्स थे| पिछले तीन सालों में यह आंकड़ा बढ़ा भी होगा तो भी बिहार में एक तिहाई से ज्यादा घरों में आज की तारीख में टेलीविज़न होना मुश्किल हैं | इसके अलावा बिहार में आज जो परिवार अपने बच्चों को सरकारी विद्यालय में भेजते हैं, वह अधिकतर या तो दिहाड़ी मज़दूर हैं या आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग के हैं | कम आय के साथ ही इन घरों में सदस्यों की औसत संख्या बहुत अधिक है | इस हालत में जिन घरों में TV होगा भी, ज़रूरी नहीं है की बच्चे उसको समय पर या नियमित तौर पर देख पाएं | 

मोबाइल फोन की भारी व्यापकता को देखते हुए यह कहा जा सकता है के जिन घरों में TV नहीं हैं, उन्हें मोबाइल के माध्यम से पंहुचा जा सकता है | लगभग हर घर में मोबाइल होने के बावज़ूद, प्रति बच्चे को एक निश्चित अवधि के लिए रोज़ मोबाइल उपलब्ध करवाना, कम आय वाले परिवार के लिए संभव नहीं होगा | इसके साथ ही मोबाइल डाटा को नियमित रूप से रिचार्ज करवाना भी हर परिवार के लिए आसान नहीं होगा | एक मुद्दा यह भी है कि मोबाइल एप्लीकेशन द्वारा पढ़ने के लिए तकनीकी ज्ञान का होना भी ज़रूरी है, जो शायद सभी माता-पिता या बच्चों खुद के लिए संभव नहीं होगा | 

 

समग्र शिक्षा कार्यालय में अधिकारियों के साथ हमारी बातचीत से मालूम पड़ा है कि बिहार सरकार इस समय अगले कम-से-कम तीन से चार महीनों तक बच्चों को घर बैठे ही रेडियो, टीवी और मोबाइल के ज़रिये पढ़ाई से जुड़े रखने का प्लान कर रही है | पर अभी तक प्राथमिक कक्षा के बच्चे ऐसे पाठ्यक्रम से वंचित हैं  |

 

अगर अगलेमहीनों में विद्यालय खुलते भी हैं, तो क्या राज्य सरकार के पास पर्याप्त व्यवधान और बजट हैं, ताकि बच्चों में दूरी और स्वच्छता बनाए रखने में सफल हो पाए? जब यह मसला बच्चों के स्वास्थ्य से संबंधित है, तो एक छोटी सी गलती भी काफी खतरनाक साबित हो सकती है | बच्चे डेस्क पर कम से कम 1 मीटर की दूरी पर बैठे, बच्चों का भीड़ न जुटे, असेम्बली, खेल और अन्य गतिविधियाँ जो भीड़-भाड़ इक्कठा करती हैं, इत्यादि | इसके साथ ही नियमित स्वास्थ्य जांच और निरीक्षण होना भी ज़रूरी होगा | सरकार ने पिछले एक महीने के दौरान अलग-अलग समय पर शिक्षा से संबंधित दिशा निर्देश जारी किये हैं | इनमे  से कुछ निर्देश हैं स्कूल की शुरुआत और अंत में बच्चों को एक साथ इकट्ठा नहीं करना, उन्हें अनावश्यक चीज़ों को छूने से मना करना, इत्यादि | 

ऊपर बिंदु पर अगर ध्यान दिया जाए तो बिहार में सरकारी विद्यालयों के पास इस तरह की व्यवस्था के लिए कमरे, बेंच-डेस्क, पर्याप्त जगह और शिक्षक अभी पूरी तरीके से उपलब्ध नहीं हैं | शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत प्रारंभिक कक्षाओं के लिए खेल के मैदान, पुस्तकालय, मध्यान-भोजन के लिए रसोई घर इत्यादि होना चाहिए | इसके साथ  ही प्राथमिक कक्षाओं में प्रति 3० बच्चों के लिए एक शिक्षक और उच्च-प्राथमिक कक्षाओं में 35 बच्चों के लिए एक शिक्षक होने चाहिए | पर इसके विपरीत, 2016-17 के आकड़ों [1] को देखा जाए तो सिर्फ 59 प्रतिशत प्राथमिक विद्यालयों और 21 प्रतिशत उच्च प्राथमिक विद्यालयों में हर एक शिक्षक पे नियम से काफी अधिक बच्चे हैं | वैसे ही, आधे से ज्यादा प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों में प्रत्येक वर्ग-कक्ष के लिए शिक्षक नही हैं | ऐसे मैं बच्चों पर निगरानी कितनी रखी जा पाएगी?

आने वाले समय में विद्यालय से संबंधित संसाधनों और सुविधाओं में सुधार के साथ ही इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी को कैसे बच्चों की पढ़ाई में ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल किया जाए, इसका प्लान करना बहुत ज़रूरी होगा | ऐसी परिस्थिति में सीमित संसाधनों के उपयोग को लेकर पुनर्विचार करना और उचित योजना तैयार करना राज्य सरकार के ज़िम्मे है | 

[1] U-DISE Elementary Education Report Card 2016-17

 

दिनेश Accountability Initiative में सीनियर पैसा एसोसिएट के पद पर कार्यरत हैं।

मृदुस्मिता सीनियर शोधकर्ता हैं ।

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