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पंचायती राज संस्थाओं का महत्व

Koushal Pathak , Indresh Sharma

8 January 2021

पंचायती राज व्यवस्था तथा उसका महत्त्व भारतीय संविधान के 73वें एवं 74वें संशोधन में स्पष्ट रूप से उल्लेखित है | सभी राज्यों को प्रत्येक पांच वर्ष में पंचायत चुनाव करवाना अनिवार्य है |

मध्य प्रदेश में पंचायती राज संस्थाओं का कार्यकाल मार्च 2020 में समाप्त हो चुका था, तथा इसके लिए सरकार की गतिविधियों के बारे में मीडिया में काफी चर्चाएं भी चल रहीं थी | बाकी राज्यों की तरह यहाँ भी लोगों द्वारा यह उम्मीद की जा रही थी कि चुनाव तय समय पर ही कराये जाएंगे |

लेकिन कोविड-19 के संक्रमण को देखते हुए मध्य प्रदेश में ग्राम पंचायत और नगरीय निकाय चुनाव तीन महीने के लिए स्थगित कर दिए गए हैं | राज्य निर्वाचन आयोग ने आदेश जारी कर कहा है कि अब ये चुनाव 20 फरवरी 2021 के बाद कराए जाएँ | हालांकि इसी कोरोना काल में राजस्थान में पंचायती राज चुनाव हुए तथा हिमाचल प्रदेश में पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव होने जा रहे हैं |

यह समझना बेहद जरुरी है कि जब पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा दिया गया तो उसके पीछे मंशा यही थी कि एक ऐसी सरकार हो जो स्थानीय लोगों की आवाज़ बन पाए तथा उन्हें वे सभी हक़ मुहैया करवाये, जिसके वे हकदार हैं |

पंचायती राज संस्थाएं यह सुनिश्चित करती हैं कि:

  • स्थानीय स्तर पर जनता का प्रतिनिधित्व करते हुए स्थानीय समस्याओं को सुनने और सुलझाने का प्रयास किया जाए |
  • उच्च सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं का लाभ समाज के कमज़ोर और वंचित तबके तक पहुँच पाए |
  • विकास कार्य बिना किसी रूकावट के चलते रहें |
  • लोगों को भरोसे में लेते हुए शासन में उनकी भागीदारी को बढ़ाया जाए |

कोविड-19 महामारी के दौरान पंचायतों के प्रतिनिधियों ने हर तरह से प्रशासन के साथ जुड़कर अपनी भूमिका के महत्व को दर्शाया है चाहे वह मास्क एवं सेनेटाईजर के वितरण की बात हो या फिर ज़रूरतमंद लोगों तक राशन पहुँचाने की व्यवस्था |

पंचायती राज संस्थाओं को सभी ज़रूरी संसाधन उपलब्ध कराये जाएँ तो अपनी बढ़ी हुई क्षमता से यह संस्थाएं ग्रामीण लोगों के लिए बेहतर सुविधाएं प्रदान करने में सक्षम होती हैं |

 

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