We want your
feedback

“सिस्टम की जटिलताओं की ओट में छिपे अधिकारी”- एक वास्तविक अनुभव

Indresh Sharma

12 July 2018

जैसा की आप हम सभी जानते हैं कि हम लोग सरकार को किसी न किसी तरह कर के रूप में पैसा देते हैं | सरकार भी उस इकठ्ठे किये गए पैसे से अपने अधिकारीयों के माध्यम से हमें सेवाएं देने का काम करती है | परन्तु सवाल यह उठता है कि यदि सरकार में बैठे लोग ही अपना काम सही से न करें या फिर लापरवाही बरतें तो उसका प्रभाव किन लोगों पर सबसे ज्यादा पड़ता है? यह सवाल तब और भी संजीदा हो जाता है, जब सेवाएं देने वालों के ऊपर बच्चों के भविष्य निर्माण की जिम्मेदारी हो |

मैं इसी से जुड़ी कुछ महीने पूर्व हुई एक वास्तविक घटना को आप सभी के समक्ष साझा कर रहा हूँ | यह बात मेरे गाँव की एक महिला शिक्षक की है जो पास के लगभग 1 किलोमीटर दूर स्कूल में मुख्य शिक्षिका के पद पर कार्यरत हैं | स्कूल सुबह 9 बजे शुरू होता है पर बावजूद इसके मुख्य शिक्षिका अपने स्कूल में अक्सर 12 बजे पहुँचती हैं | कई बार तो यदि उनका मन नहीं करे तो वह स्कूल भी नहीं आतीं | पंचायत भी ब्लॉक शिक्षा अधिकारी के समक्ष मुख्य शिक्षिका के बारे में शिकायत कर चुकी है लेकिन अधिकारियों की तरफ से उन्हें चेतावनी से ज्यादा कुछ नहीं मिला |

यह मार्च 2018 के पहले सप्ताह का दिन था, जब स्कूल में बच्चों की परीक्षाएं चल रहीं थीं | दिनचर्या के अनुसार आज मुख्य शिक्षिका स्कूल में नहीं आई थीं परन्तु आज का दिन बाकी दिनों से कुछ अलग था | जिला परियोजना अधिकारी सर्व शिक्षा अभियान अचानक स्कूल में परीक्षा के दौरान औचक निरिक्षण करने आ पहुंचे | दुसरे अध्यापकों से जानने के बाद मालुम चला कि बिना स्कूल को जानकारी दिए मुख्य शिक्षिका आज स्कूल नहीं आयीं हैं | जिला परियोजना अधिकारी ने सभी रजिस्टरों का निरिक्षण किया और पाया की कोई भी रिकॉर्ड पिछले काफी महीनों से अपडेट नहीं किया गया है | इसी बीच पता नहीं कैसे मुख्य शिक्षिका को अधिकारी के पहुँचने की सूचना मिली और उसने पड़ोस के एक लड़के के हाथ में छुट्टी की अर्जी भिजवा दी | लेकिन मुख्य शिक्षिका ने जल्दबाजी में अर्जी की तारीख में वर्ष 2018 की जगह 2017 लिख दिया था | गुस्साए अधिकारी ने तुरंत शिक्षकों को स्कूल प्रबंधन समिति के सदस्यों, अभिभावकों एवं पंचायत के सदस्यों को स्कूल में आने को कहा ताकि मुख्य शिक्षिका के विरुद्ध कड़ी कार्यवाही की जाये |

अभिभावकों ने अधिकारी के सामने मुख्य शिक्षिका के बारे में बात रखते हुए बताया कि उनकी वजह से शिक्षकों एवं बच्चों के ऊपर काफी नकारात्मक असर पड़ रहा है | अधिकारी ने स्वयं पत्र तैयार करके सभी मौजूद लोगों से हस्ताक्षर करवाये | अधिकारी ने लोगों को आश्वस्त किया कि उच्च अधिकारी से इसके बारे में शिकायत की जायेगी तथा यह सुनिश्चित किया जायेगा कि मुख्य शिक्षिका के विरुद्ध कड़ी से कड़ी कार्यवाई हो | इसके बाद जिला परियोजना अधिकारी ने ब्लॉक शिक्षा अधिकारी को भी इसकी सूचना दी | इस बात को बीते हुए आज 4 महीने से अधिक हो चुके हैं तो आप लोग जरा सोचिये कि अब आगे क्या हुआ होगा? सोचिये?

आगे यह हुआ कि 4 महीने बीत जाने के बाद अब मुख्य शिक्षिका वरिष्ठता के आधार पर पदोन्नत हो गई हैं और केंद्र संकुल समन्वयक (CHT) भी बन चुकी हैं | जी हाँ, आपने बिलकुल सही सुना | हिमाचल प्रदेश में शिक्षा विभाग दो भागों में कार्य करता है – पहला शिक्षा विभाग का स्थायी ढांचा जिसे सभी प्रकार की प्रशासनिक शक्तियां प्राप्त हैं और दूसरी तरफ सर्व शिक्षा अभियान के रूप में अस्थाई सोसाइटी | हिमाचल में शिक्षकों की पदोन्नति वरिष्ठता के आधार पर शिक्षा विभाग के स्थाई ढांचे द्वारा की जाती है | वहीं सर्व शिक्षा अभियान के अंतर्गत आने वाले अधिकारीयों के पास वास्तव में किसी शिक्षक को हटाने एवं पदोन्नत करने की कोई शक्ति ही नहीं होती|

एक तरफ सर्व शिक्षा अभियान के जिला परियोजना अधिकारी ने मुख्य शिक्षिका के काम को देखते हुए उनके ऊपर एक्शन लेने की हिम्मत दिखाई | वहीं दूसरी तरफ रुढ़िवादी ढांचे की वजह से वरिष्ठता के आधार पर मुख्य शिक्षिका के ऊपर कार्यवाई होने के बजाय उसकी पदोन्नति हुई | इससे ये कहना गलत नहीं होगा कि ऐसे अधिकारी सिस्टम की जटिलताओं के ढांचे की ओट में  छिप जाते हैं | क्यों इस तरह के सिस्टम तैयार किये जाते हैं जिसमें सरकार खुद ही उलझ कर रह जाती है और फायदा ले जाते हैं तो केवल कुछ मौकापरस्त अधिकारी?

पिछले अध्ययनों और अनुभवों के आधार पर शायद मुझे यह कहने में मुझे कतई गुरेज नहीं है कि यदि वह निरिक्षण अधिकारी शिक्षा विभाग के स्थाई ढांचे यानी लाइन डिपार्टमेंट से होता तो थोड़ी बहुत कार्यवाही शायद देखने को मिल भी जाती |

यह समस्या केवल शिक्षा विभाग की ही नहीं है बल्कि यह बात सभी विभागों के ऊपर लागु होती है जो सेवा वितरण में अपनी अहम् भूमिका निभातें हैं | ऐसे कितने ही रोजमर्रा में इस तरह के अधिकारी होते हैं, जिनके खिलाफ लोग अपनी आवाज तो उठाते हैं परन्तु सिस्टम की जटिलता या कभी लापरवाही की वजह से ऐसे लोग पाक साफ़ निकल जाते हैं | जरुरी है कि सरकार ऐसा सिस्टम तैयार करे जो ऐसे लोगों के खिलाफ पूरी पारदर्शिता से जांच करे और उनकी जवाबदेही सुनिश्चित करते हुए अपना निष्पक्ष निर्णय सुनाये | इसी से एक बेहतर सेवा वितरण के सिस्टम का निर्माण हो पायेगा |

Add new comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *