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जवाबदेही के तंत्र को मज़बूत बनाने की आवश्यकता

Uday Shankar Kumar

16 December 2020

कोरोना महामारी के दौरान राशन कार्ड का महत्व अत्याधिक बढ़ गया | पूरे देश में लॉकडाउन होने के कारण काफी समय तक लोग अपने-अपने घरों में कैद रहे | काम पर ना जा पाने की वजह से रोज़ कमाकर खाने वाले परिवारों के सामने खाने की समस्या पैदा हो गयी | बिहार सरकार ने राशन कार्ड धारकों के लिए मुफ्त राशन बांटने की प्रक्रिया शुरू की, जिसका लाभ लाखों नागरिकों ने उठाया | प्रवासी श्रमिकों को भी सरकार ने मुफ्त में राशन देने का निर्णय लिया |

राशन कार्ड एक ऐसा सरकारी दस्तावेज़ है जिसकी मदद से नागरिक सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पी डी एस) के तहत उचित दर की दुकानों से गेहूं, चावल आदि बाजार मूल्य से बेहद कम दाम पर खरीद सकते हैं | यह कार्ड राज्य सरकार के द्वारा नागरिकों के लिए जारी किया जाता है, जिसे बनाने की प्रक्रिया आमतौर पर प्रत्येक राज्य में अलग-अलग होती है | हमारे देश में राशन कार्ड एक पहचान पत्र के रूप में भी काम करता है |

कोरोना महामारी के दौरान ऐसे लोग जिनके पास राशन कार्ड नहीं थे उनके लिए राज्य सरकारों ने नए राशन कार्ड बनाने की प्रक्रिया शुरू की (यह भी पढ़ें:‘Process of Making New Ration Cards was Expedited’) | बिहार सरकार ने राशन कार्ड बनाने की ज़िम्मेदारी जीविका संस्थान को दी, और उन्हें प्रति राशन कार्ड 2 रुपये लेने का आदेश दिया | जीविका दीदियों ने गाँव में घूमकर सर्वेक्षण किया तथा घर-घर जाकर लोगों के लिए नया राशन कार्ड बनाया |

यह काम बहुत ही सराहनीय था लेकिन गाँव में कई लोगों से यह भी पता चला कि नए राशन कार्ड बनाने के लिए 50 रूपये से लेकर 100 रुपये तक भी लिया जा रहा है | बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि एक तरफ लोगों को आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ रहा है, तो दूसरी तरफ कुछ लोग सरकारी योजनाओं का दुरूपयोग कर पैसा वसूलने का काम कर रहे हैं |

सरकार आम जनता की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए योजनाएं बनाती है परन्तु यह सुनिश्चित करना भी ज़रूरी है कि सभी योजनाएं ज़मीनी स्तर पर ठीक तरह से क्रियान्वित हों |

अनुश्रवण तथा जवाबदेही के तंत्र को मज़बूत बनाने की आवश्यकता है ताकि आम नागरिकों तक वे सभी सेवाएं पहुँच पाएं जिनके वे हकदार हैं |

 

और पढ़ें: कोरोना काल मे जीविका दीदी का योगदान

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