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महामारी काल में भारत के नौकरशाही की चुनौतियाँ

Avantika Shrivastava

25 November 2020

संकट की घड़ी में नौकरशाही क्या हासिल कर सकती है, और नौकरशाही के काम ना करने पर एक देश के लिए कितना कुछ दांव पर होता है, भारत इसका उदहारण है |

अगस्त में कोविड-19 महामारी के बीच खबर आयी कि 600 हजार से अधिक स्वास्थ्य और पोषण से जुड़े कार्यकर्ता हड़ताल पर जा रहे थे | ये वे लोग थे जो इस महामारी का सामना कर रहे थे | आशा और आंगनवाड़ी कार्यकर्ता के नाम से लोग इन्हे जानते हैं | इनकी मांगों में बेहतर काम करने की स्थिति और न्यूनतम मजदूरी थी | ऐसी सार्वजनिक प्रशासन की जटिलताएँ, जो हड़ताल का कारण बनीं, उनमे आसानी से सुधार लाना मुमकिन नहीं है और यह अन्य विकासशील देशों के लिए सबक हो सकता है |

आशा कार्यकर्ता भारत सरकार के राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के लिए महत्वपूर्ण हैं | दूसरी ओर, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता एकीकृत बाल विकास सेवा योजना (ICDS) का एक अभिन्न अंग हैं | अभी 2019 तक 2.2 मिलियन से अधिक आशा और आँगनवाड़ी कार्यकर्ता हैं, और यह सभी महिलाएं हैं, जैसा कि सरकारी दिशानिर्देशों के अनुसार अनिवार्य है |

महामारी से पूर्व, आशा कार्यकर्ताओं को केवल सरकार द्वारा निर्धारित बुनियादी स्वास्थ्य गतिविधियों के लिए मुआवज़ा मिलता था | और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को प्रारम्भिक बाल्यकाल और मातृ पोषण से जुड़े कार्यों के लिए लगभग 4,000 रूपए प्रति माह का मानदेय दिया जाता था | उन्हें निश्चित मजदूरी नहीं मिलती थी, क्योंकि दोनों को स्वैच्छिक कार्यकर्ता माना जाता है, सरकारी कर्मचारी नहीं |

फिर भी, महामारी की चपेट में आने पर, आशा और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं ने: संपर्क अनुरेखण (contact tracing), निगरानी, लोगों को सामाजिक दूरी के मानदंडों का पालन करवाने व जागरूकता बढ़ाने जैसे कठिन कार्यों को करने में निर्णायक भूमिका निभायी है | भारत सरकार ने डॉक्टरों, निचले स्तर के अधिकारियों, आशा और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के लिए अतिरिक्त मौद्रिक प्रोत्साहन और बीमा कवर की घोषणा की, और ‘कोरोना वारियर्स’ कह कर इनकी प्रशंसा की | लेकिन क्या इतना काफी है ?

महामारी पर धीमी प्रतिक्रिया

सरकार की रणनीति में व्यापक रूप से समुदायों में वायरस के फैलने की रोकथाम, निचले कार्यकर्ताओं द्वारा ही मॉनिटर किया जाता है | यह निर्णय दो व्यावहारिक कारणों से महत्वपूर्ण है:

  • देश की आबादी का एक बड़ा हिस्सा अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों में रहता है |
  • अगर वायरस को फैलने दिया गया, तो ग्रामीण सार्वजनिक स्वास्थ्य बुनियादी ढांचा, संक्रमण में लगातार वृद्धि का सामना नहीं कर पायेगा |

5 मिलियन से अधिक ज़मीनी कार्यकर्ता और स्थानीय सरकारी कर्मचारी तैनात किए गए | भारत ने मार्च में एक सख्त लॉकडाउन किया | देश ने अपनी सीमाओं को सील कर दिया | दुनिया की चौथी सबसे बड़ी रेलवे प्रणाली और राज्यों के भीतर की गतिशीलता को समाप्त कर दिया गया | शुरुआती महीनों में मास्क, सैनिटाइज़र और अन्य व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरणों की आपूर्ति स्थिर नहीं थी | एक विश्वसनीय समाचार रिपोर्ट के अनुसार, जुलाई के मध्य तक 15,000 फ्रंटलाइन कार्यकर्ताओं कोरोना पॉजिटिव पाए गए |

लचर व्यवस्था

देश में धीरे-धीरे अब लॉकडाउन ख़त्म हो रहा है, तो पहले से ही अत्याधिक काम सँभालने वाले फ्रंटलाइन कार्यकर्ताओं को अब दोनों – पूर्व  और कोविड-19 महामारी कार्यों को साथ में करना पड़ा |महामारी ने नौकरशाही के जुटाव का पैमाना बदल दिया | इसने नौकरशाही व्यवस्था की चुनौतियों और कमियों को सामने रख दिया |

कई चुनौतियाँ एकाउंटेबिलिटी इनिशिएटिव द्वारा ‘Inside Districts‘ श्रृंखला में सामने आईं | जैसे की एक आंगनवाड़ी कार्यकर्ता ने ग्राम स्तर के स्वास्थ्य और पोषण केंद्र को पटरी पर लाने की बात की, तो आशा कार्यकर्ता ने कई प्राथमिकताओं को साथ में प्रबंधित करने की चुनौती का ज़िक्र किया |

ये सभी अनुभव एक बड़ी समस्या की तरफ इशारा करते हैं | खंड विकास अधिकारियों, जो प्रशासनिक स्तर में विकास योजनाओं के लिए जिम्मेदार हैं, के साथ एक सर्वेक्षण किया गया और पाया कि ब्लॉक में ‘नौकरशाही अधिभार‘  व्यापक है | एक अन्य विश्लेषण में शोधकर्ताओं ने शिक्षा प्रशासकों का साक्षात्कार लिया | शिक्षा प्रशासकों ने बताया कि इस पदानुक्रमित श्रृंखला में वे बस एक ‘दूत’ की तरह महसूस करते हैं |

इन व्यक्तियों को लगता है कि ये जिस प्रणाली का हिस्सा हैं, उसमें इनका मत या भूमिका बहुत महत्वहीन है | महामारी के लिए व्यवस्था भी पूरी तरह से तैयार नही थी |

पुन: बेहतर निर्माण

दुनिया भर में हम टूटी हुई स्वास्थ्य प्रणालियों, बड़े पैमाने पर प्रशासनिक कार्यान्वयन और अभिभूत सार्वजनिक श्रमिकों के बारे में सुनते हैं, जिन्होंने अपनी जान जोखिम में डालकर अनगिनत लोगों की जान बचायी | उन्हें अक्सर नायक के रूप में देखा जाता है, लेकिन फिर भी उनकी समस्याओं पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है, समाधान करना तो दूर कि बात है |

अधिकांश विकासशील देशों में, सरकार की योजनाएं दीर्घकालिक समय में प्रभाव डालने के लिए सक्षम होती है | समुदाय की सेवा करने की एक व्यक्ति की प्रेरणा और इच्छा महामारी के समय में पर्याप्त नहीं है | उन्हें एक ऐसी प्रणाली की आवश्यकता है जो सभी स्तरों पर उनका समर्थन करे |

कई देशों में ‘पुन: बेहतर निर्माण‘ की बात पहले से ही चल रही है | इसका एक तरीका यह है कि इस प्रयास के केंद्र में निचली नौकरशाही को रखा जाए |

 

यह लेख सर्वप्रथम Southern Voice में अंग्रेजी में प्रकाशित हुआ था |

विनोद वर्मा ने इसका अनुवाद किया है |

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